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फाइल फोटो |
देश में बेगुनाहों को कैसे पुलिस द्वारा फंसाया जा रहा है, झूठे मुकद्दमों में जेल भेजा रहा है तथा न्यायिक जांच को बनने वाले आयोगों की कैसे बेकद्री होती है, जानना चाहते हैं तो राजीव यादव (जो कि एक सामजिक कार्यकर्ता हैं और रिहाई मंच से जुड़े हैं ) के लेख को पड़ने की आवश्यकता है | यह हकीकत है कि हम यह लिखेंगे तो आलोचना होगी लेकिन सच्चाई सभी के सामने आना जरुरी है | राजनैतिक दलों ने बेगुनाह मुस्लिम युवकों को सत्ता में आने पर रिहा करने का वायदा किया लेकिन सत्ता मिलते ही वायदों पर अमल करना तो दूर चर्चा तक नहीं की गयी | पढिये समाजवादी सरकार को मुस्लिम युवको की रिहाई के वायदे पर आइना दिखता राजीव यादव का यह फेसबुक पोस्ट-
10 साल पहले 12 दिसम्बर 2007 को तत्कालीन मायावती सरकार में तारिक कासमी को उनके घर से कुछ दूरी पर रानी सराय चेकपोस्ट, आजमगढ़ से सादी वर्दी में बिना नम्बर प्लेट वाली गाड़ी में एसटीएफ ने अगवा कर लिया था। जिसके खिलाफ पूरे आजमगढ़ में आंदोलन शुरू हो गया था
जिसके बाद बढ़ते दबाव के कारण एसटीएफ ने तारिक कासमी और इसी तरह मड़ियाहूं, जौनपुर से 16 दिसम्बर को उठाए गए खालिद मुजाहिद को 22 दिसम्बर 2007 को हूजी का आतंकी बताकर बाराबंकी स्टेशन से फर्जी गिरफतारी दिखा दी थी।
पुलिस की इस साम्प्रदायिक और आपराधिक कार्यशैली पर पूरे सूबे में बेगुनाहों की रिहाई जनआंदोलन का उभार हुआ था। जिसके दबाव में तत्कालीन मायावती सरकार ने इस फर्जी गिरफतारी पर जांच के लिए जस्टिस निमेष कमीशन का गठन कर 6 महीने में रिपोर्ट की बात कही। पर 6 महीने तक निमेष कमीशन को ऑफिस तक नहीं मिला।
सपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को रिहा करने का वादा तो किया लेकिन चुनाव जीतने के बाद वो न सिर्फ अपने वादे से मुकर गई बल्कि खालिद मुजाहिद की हत्या भी करवा दिया।
जबकि निमेष कमीशन ने तारिक और खालिद की गिरफ्तारी को संदिग्ध बताते हुए दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की थी। सपा सरकार ने अपने चुनावी वादे को पूरा किया होता तो न सिर्फ तारिक कासमी आजाद होते और खालिद जिंदा होते बल्कि उन जैसे बेगुनाह युवाओं को फंसाने वाले पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह, तत्कालीन एडीजी बृजलाल, आईपीएस अधिकारी मनोज कुमार झा, चिरंजीव नाथ सिन्हा जैसे लोग जो खालिद की हत्या के भी आरोपी हैं, जेलों में बंद होते।
साम्प्रदायिक खुफिया और पुलिस अधिकारियों का मनोबल बनाए रखने के लिए ही अखिलेश सरकार ने इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। मुलायम सिंह ने कई सार्वजनिक सभाओं में अपने पेरोल पर काम करने वाले मौलानाओं की मौजूदगी में यह अफवाह भी फैलाने की कोशिश की कि सपा सरकार ने आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को छोड़ दिया है। इसी तरह रामगोपाल यादव ने भी राज्य सभा में इस झूठ को दोहराया।
सपा सरकार यादव सिंह जैसे महाभ्रष्ट आदमी के बचाव में तो सुप्रीम कोर्ट चली जाती है लेकिन आतंकवाद के नाम पर फंसाए गए बेगुनाहों को छोड़ने के सवाल पर संघ परिवार से जुड़ी रंजना अग्निहोत्री द्वारा दायर याचिक के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट नहीं जाती है।