सरकार ने अडानी पर लगे 200 करोड़ के जुर्माने को किया माफ !
पर्यावरण मंत्रालय ने Adani Ports & SEZ को राहत देते हुए 200 करोड़ का जुर्माना वापस लिया, यूपीए सरकार के वक्त लगाया था जुर्माना
दिल्ली : केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने अडानी ग्रुप को बड़ी राहत मिली है. मंत्रालय ने Adani Ports & SEZ को राहत देते हुए 200 करोड़ का जुर्माना वापस ले लिया है. Adani Ports & SEZ पर ये जुर्माना यूपीए सरकार के दौरान लगाया गया था और पर्यावरण संबंधी नियमों की अनदेखी पर लगाया गया था जुर्माना .
पर्यावरण मंत्रालय ने Adani Ports & SEZ के waterfront development project को दी गई पर्यावरण क्लियरेंस को भी बढ़ा दिया है. कंपनी का ये प्रोजेक्ट गुजरात के मुंदड़ा में स्थित है और ये पर्यावरण क्लियरेंस कंपनी को 2009 में ही दी गई थी. अडानी ग्रुप की कंपनी पर कई सख्त नियम लागू किए गए थे, जिनमें से ज्यादातर को हाल ही में पर्यावरण मंत्रालय ने हटा लिया था. ये फैसले सितंबर 2015 में किए गए थे और पर्यावरण संबंधी क्लियरेंस अक्टूबर 2016 में दी गई.
मुंदड़ा में Adani waterfront development सूखे और तरह सामान के लाने-ले जाने का बहुत बड़ा प्रोजेक्ट है और करीब 700 एकड़ में फैला है. ये एक विशाल SEZ और टाउनशिप कॉम्पलेक्स का हिस्सा है. फिलहाल पर्यावरण संबंधी रियायतें मिलने पर अडानी समूह और मंत्रालय दोनों ने चुप्पी साध रखी है.
अडानी ग्रुप के मालिक गौतम अडानी और सरकार के संबंधों की चर्चा मीडिया में अक्सर होती रहती है. गौतम अडानी के पीएम मोदी के साथ भी मधुर संबंध बताए जाते हैं, हालांकि सरकारी स्तर पर यही कहा जाता है कि किसी को भी संबंधों के आधार पर फायदा नहीं पहुंचाया गया है. इस मामले में सरकार का एक तर्क ये समझ में आता है कि वो उद्योगों के लिए लगातार अच्छा माहौल बनाने की कोशिश में है, बहुत संभव है अडानी ग्रुप को ये रियायतें इसी से मिली हों. (इंडिया संवाद से साभार)
साल भर में सवा लाख से ज्यादा किसानों की मौत
Written by : तरुण कुमार
नई दिल्ली। भारत को एक कृषि प्रधान देश कहा जाता है जहां 48.9 प्रतिशत जनसंख्या सीधे या फिर अन्य किसी न किसी रूप से कृषि पर निर्भर है। लेकिन कृषि प्रधान देश में किसानों की क्या हालत है इसका अंदाजा शायद की किसी को हो। आज किसान आत्महत्या सबसे बड़ा चिंता का विषय बन चुका है। आखिर क्यों किसानों की आत्महत्या के मामले साल दर साल बढ़ते जा रहे हैं? इसी संबंध में पहली बार राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने आंकाडे जारी किए।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार वर्ष 2014 में 1,31,666 किसानों की मौत हुई इसमें से 5,650 किसानों ने आत्महत्या की। जोकि कुल किसानों की मौत का 4.3 प्रतिशत है। 5,650 आत्महत्या में 5,178 किसान पुरूष थे जबकि 472 महिला किसान थीं। ऐसा नहीं है कि केवल पुरुष किसान ही किसी कारण आत्महत्या का रास्ता अपनाते हैं। ऐसे बहुत से राज्य हैं जहां महिलाओं ने परेशानी के चलते मौत को गले लगाया है। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार तेलंगाना में 472 में से 147 महिला किसानों ने आत्महत्या की तो वहीं मध्य प्रदेश में इनका आंकड़ा 138 दर्ज किया गया। इसके अलावा महाराष्ट्र में 70 और छत्तीसगढ़ में 52 आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए।
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MEN
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WOMEN
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TRANSGENDER
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Status Not Know |
3667
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1261
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03
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Others
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5159
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2339
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06
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Separated
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599
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316
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01
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Divorcee
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551
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417
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00
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Widowed/ Widower
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1410
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1304
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00
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Married
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59744
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27064
|
00
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Un-Married
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17999
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9820
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06
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Total
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89129
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42521
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16
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किसानों की आत्महत्या के पीछे सबसे बड़े कारण ऋणग्रस्तता और परिवार से जुड़ी समस्याओं को बताया गया है। आंकड़ों के अनुसार 20.6 प्रतिशत तथा 20.1 प्रतिशत केवल इन्हीं कारणों के चलते किसानों ने आत्महत्या की। इसके अलावा 16.8 प्रतिशत किसानों ने फसल बर्बाद होने की वजह से तो 13.2 प्रतिशत किसानों ने बीमारी के चलते मौत को गले लगाया। जबकि 4.9 प्रतिशत किसानों को ड्रग्स के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी। साल 2014 में किसानों द्वारा की गई आत्महत्या के कुल (5,650) मामलों में से 2,568 मामले केवल महाराष्ट्र में दर्ज किए गए जबकि 898 और 826 मामले तेलंगाना और मध्यप्रदेश से सामने आए। इनके अलावा कर्नाटक में 321 तो छत्तीसगढ़ में 443 किसानों ने आत्महत्या का रास्ता अपनाया।
आखिर क्यों करते है किसान आत्महत्या ...
केवल पुरुष किसानों की बात करें तो वर्ष 2014 में बैंक का कर्ज नहीं दे पाने से 21.5 प्रतिशत किसानों ने आत्महत्या की वहीं 20 प्रतिशत ने घरेलू परेशानी की वजह से मौत को गले लगाया। 21.4% महिला किसानों ने कृषि संबंधी परेशानी के चलते आत्महत्या की तो वहीं घरेलू परेशानी के कारण 20.6% जबकि शादी से संबंधित परेशानी की वजह से 12.3% ने महिलाओं ने मौत को गले लगाया। इसने अलावा 10.8% महिलाओं ने बैंक करप्टी घोषित होने पर जान दी।
महाराष्ट्र में 33.4% और तेलंगाना में 23.2% किसानों ने मौत को इसलिए गले लगा लिया क्योंकि वह बैंक का कर्ज नहीं दे पा रहे थे। जबकि हिमाचल प्रदेश में 87.5% किसानों की आत्महत्या की वजह उनकी फसल का बर्बाद होना बनी। उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, बिहार और झारखंड में 2.7% जबकि हिमाचल प्रदेश में 4.1% किसानों ने संदिग्ध हालात में आत्महत्या का रास्ता चुना। साल 2014 में महाराष्ट्र में 765 तथा तेलंगाना में 146 किसानों ने खेती के लिए लिये गए बैंक का कर्ज नहीं चुका पाने पर यह कदम उठाया।
किसानों की आत्महत्या का कारण केवल यह सभी वजन नहीं रही है इनके अलावा जमीन भी एक ऐसी वजह है जिसके चलते न जाने कितने ही किसानों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। भूमि धारक किसानों को चार वर्गों में बांटा गया है। पहले वर्ग में वह किसान आते हैं जिनके पास एक हेक्टेयर से कम जमीन होती है, जबकि दूसरे वर्ग में वह किसान आते हैं जिनके पास एक हेक्टेयर से ज्यादा लेकिन दो हेक्टेयर से कम। इसी तरह तीसरे वर्ग में उन किसानों को रखा गया है जिनके पास दो हेक्टेयर या उससे अधिक लेकिन दस हेक्टेयर से कम तथा चौथे वर्ग में वह किसान आते हैं जिनके पास दस हेक्टेयर से अधिक जमीन है।
पहले तथा दूसरे वर्ग के किसानों की आत्महत्या के आंकड़ों पर नजर डालें तो 44.5 % और 27.9 % किसानों ने जमीनी विवाद के चलते आत्महत्या की। इन दोनों वर्गों में 5,650 किसानों में से 4,095 किसानों ने मौत को गले लगाया। तो वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र में दूसरे वर्ग के किसानों की आत्महत्या का प्रतिशत 53.1 दर्ज किया गया, जबकि 14.5 % तेलंगाना में दर्ज किया गया। महाराष्ट्र में ही पहले वर्ग के किसानों का आंकड़ा 39.7 % रिकॉर्ड किया गया है। जबकि इसी श्रेणी के किसानों का आंकाड़ा मध्य प्रदेश में 25.5 % है। चौथे वर्ग में 47.3% किसानों ने आत्महत्या की।
किसानों द्वारा साल दर साल आत्महत्या करना देश के लिए बहुत अच्छा संकेत नहीं है। ऐसे में देखना यह है कि जारी किए गए आंकडों पर सरकार की नजर पड़ती है या नहीं। किसानों में बढ़ती आत्महत्या एक लाइलाज बीमारी की तरह फैलती जा रही है। अगर इसका जल्द ही समाधान नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब देश का हर व्यक्ति दाने दाने के लिए मोहताज हो जाएगा। (नेशनल दस्तक से साभार)