जब जब किसीको चर्चा में आना होता है, फेमस होना होता है, अपना धंदा तेजी से बढ़ाना होता है वह इस्लाम के खिलाफ बयान देता है. विश्व का इतिहास है सबसे ज्यादा विश्व में किसीका विरोध हुआ है तो वह है इस्लाम. विश्व में कई फीरौन जैसे बड़े बड़े राजा महाराजाओं ने इस्लाम का विरोध करके ही खुदको चर्चा का विषय बनाया तो इरफ़ान खान तो बहुत छोटा बेपारी है. फिलहाल उसकी फिल्म रिलीज होने वाली है. और वह उसका धंदा है. किसी और का विरोध करेगा तो जेल जाना पडेगा और अगर फेमस होना है तो इस्लाम का विरोध करना चाहिए यह दो बाते वह अच्छी तरह जानता है. जब जब किताबे नहीं बिकती तो तस्लिमाबाई इस्लाम के विरोध में बयान देती है. हाल ही में कमलेश तिआरी को इस्लाम विरोधी बयान ने नेशनल लेवल का नेता बना दिया है. डोनाल्ड ट्रम्प को अमेरिका का राष्ट्राध्यक्ष बनना है उसने भी इस्लाम विरोधी बयान देकर विश्व में चर्चा का विषय बना हुआ था. सभी मीडिया में वह सुर्खियाँ बटोर रहा था. कई छोटे मोटे संगठन खुदको फेमस करने के लिए और कई छोटे मोटे नेता खुदकी दुकानदारी चलाने के लिए इस्लाम या मुसलमान का विरोध करते है. और हिन्दुओ को इकट्ठा करते है. अगर सच में यह हिन्दू हितैषी होर्त तो एक साल में सवाल लाख से ज्यादा हिन्दू किसानो ने आत्महत्या नहीं की होती. यह सबदे अच्छा उदाहरण है. एप गौर कर सकते हो और इतिहास के पन्ने छान सकते हो जिसने भी इस्लाम के खिलाफ बयान दिया वह सब अपना अपना धंदा च्यालाने के लिए ही दिया हुआ नजर आयेगा....
हर किसीका अपना अपना धंदा है और किसीने चार लाइन इस्लाम के विरोध में बोल दि फिर क्या देखते है मुसलमान तो सात जमीन और सातो आसमान सर पर उठा लेते है. उस चार लाइन को चार महीने तक चर्चा का विषय बनाए रखते है. और दिन रात अपना काम धंदा छोड़कर बेवकुफो की आलोचना करते रहते है. और जो विरोधी बयान देता है वह एक मिनट में अपना काम कर लेता है. और बाकी काम मुसलमानों पर छोड़ देता है. और सारे मुसलमान उसके काम में दिलो जान से महेनत और लगन से जुट जाते है. और उस व्यक्ति को फेमस करने और कामियाब करने के बाद ही दम लेते है. पिछली बार कमलेश तिवारी का विरोध कर उसको नेशनल लेवल का नेता बना दिया था. एक एक मोर्चा में सात सात लाख लोग इकट्ठा हुए थे. लेकिन यह सात सात लाख लोगो का गिरोह उस वक्त कहाँ जाता है जब चुनाव होते है ? उस वक्त तो राजा बनने का अवसर होता है ऐसे मौके पर तो हर एक ने इकट्ठा होने की जरुरत होती है लेकिन होते नहीं यह अफ़सोस की बात है. लेकिन जब किसीको राजा बनाना होता है तब पूरी ताकत से राजा बनाकर ही छोड़ते है.
लेकिन मैंने देखा है के 82 बेगुनाह मुसलमान सलाखों के पीछे है और यह बात मुसलमानों के साथ साथ कई गैरमुस्लिम भी मानते है. फिर इस विषय पर सात सात लाख मुसलमान इकट्ठा क्यों नहीं होते ? अगर इस्लाम की इतनी फ़िक्र है तो मुसलमानों की भी उससे ज्यादा फ़िक्र होनी चाहिए. अगर मुसलमान ही नहीं होंगे तो इस्लाम कैसे आगे बढेगा ? अल्लाह ने दावा किया है की, इस्लाम ग़ालिब होकर रहेगा. फिर मुसलमानों को चाहिए की अल्लाह का काम अल्लाह पर छोड़े और इंसानों का काम इंसान करे. और मुसलमान का पहला काम है इंसानों को बचाना उन इंसानों को जो बेगुनाह क़त्ल किये जा रहे है फिर वह किसी भी जाती या धर्म से हो......
खुदा हाफिज
(नोट- यह बात सभी 100% फिसद मुसलमानों पर लागू नहीं होती. सिर्फ उनके लिए है जो यह गलतिया करते है.)