मै यहाँ ये साबित नहीं करना चाहता हूँ के कुरआन विज्ञान की किताब है या सच्ची किताब है क्यों के कुरआन किसी का मोहताज नहीं इसलिए की कुरआन खुद एक सचची और अलाह की किताब है यही वजाह है के ऐसी सूरत कोई इंसान आज तक नहीं बना सका
2:"हमने इंसान को इब्तेदा(Starting)मिटटी के रस से बनाया फिर उसे एक सुरक्शि जगह पर टपकी एक बूँद में परिवर्तित किया,फिर उस बूँद को लोथड़े की शक्ल दिया, फिर लोथड़े को बोती बनाया,फिर बोती की हड्डियां बनायी फिर हड्डियों पर गोश चढाया,फिर उसे एक रचना बनाकर खडा किया ! बस बड़ा ही बरकत वाला है अल्लाह, सब कारीगरों से बेहतर कारीगर (कुरान 39 आयात 6)
3:क्या वह एक गंदा पानी (विर्य० ना था जो (गर्भाशय)में टपकाया जाता है ? फिर वह एक थक्का बना फिर अल्लाह ने उसका शारीर बनाया और उसके अंग ठीक किये फिर उस से पुरुष और स्त्री दो किस्में बनायी (कुरान 75 आयात 37-38-39)
1677 ई. में "होम" और "ल्यूनहोक" ऐसे दो पहेले वैज्ञानिक थे जिन्होंने मिक्रोस्कोप से वीर्य शुक्राणुओं का अध्ययन किया था, और बच्चा पैदा होनेकी स्थिति कुछ इस तरहा बतायी थी
"शुक्राणुओं की हर एक कोशिका में एक छोटा सा मानव होता है जो गर्भाशय में मौजूद होता है जिसको Perforation Theory कहा जाता है"
फिर मशहूर वैज्ञानिक "डी. ग्राफ" सहित कई वैज्ञानिकों ने समझना शुरू किया की "अंडे के अंदर ही एक मानवीय अस्तित्व सूक्ष्म अवस्था में पाया जाता है "
इसके कुछ और साल बाद 18 वि सदी ईस्वी मे "MAUPEITIUS" नामक वैज्ञानिक ने पाहे दोनों विचारों के विपरीत प्रचार शुरू किया की "कोई बच्चा अपनी माता पिता दोनों की संयुक्त विरासत का प्रतिनिधि नहीं होता है"
फिर अमेरिका में थोमस जिफर्सन विश्वविद्यालय, फिलोडोल्फिया उदार विभाग के अध्यक्ष दन्त संस्थान के निर्देशक और अधिकृत वैज्ञानिक "प्रोफ़ेसर मार्शल जोंस" ने कहा की उपरोक्त कुरआन के अवतारित होने के समय कोई ऐसी चीज नहीं थी जो के ये सब ठीक-ठीक कह सके कुरआन के अवतरण के 1300 साल बाद कुछ सूक्ष्म दर्शक बनाने में इंसान कामियाब हो सका था,. तब "प्रोफ़ेसर मार्शल जोंस" ने कहा की " मुझे इस बात में ये मानने के लिए संकोच नहीं के मुहम्मद (स.अ.स) पर जिस वक्त ये आयात अवतारित हुवी उस वक्त कोई कुदरती शक्ति उनके साथ जरुर थी"
फिर इनके बाद प्रोफ़ेसर कैथमुर और कई वैज्ञानिक आए लेकिन सब ने यही कहा इस बात से ये जाहिर है के कुरआन अल्लाह की किताब है