Type Here to Get Search Results !

Click

ईसिस का इतिहास और हमारा कर्तव्य

कुछ दिनों पहले मेरी एक दोस्त ने सवाल किया, “ये ISIS क्या है? ये अपने आप को इस्लामिक स्टेट क्यों पुकारते है? इस्लाम के नाम पर ये गिरोह इतनी वेहशतनाक हरकते कैसे कर सकते है? हमने तो मुसलमानों को इतना बुरा करते या सोचते कभी नहीं देखा”.
सवाल सुनते ही मेरे ज़हन में भी तरह तरह की तस्वीरे और खयालात आने लगे और मैं सोचने लगी की मीडिया ने अपना काम कर दिया. पुरी दुनिया अवाम के नज़दीक इस्लाम को और मुसलमानों को एक वेहशी और ना-अक्ल मज़हब साबित कर दिया.
लेकिन आज सारे मुसलमानों के ज़हन में भी यही सवाल है कि:
ये ISIS क्या बला है? 
2014 के पहले कभी इसका नाम नहीं सुना था, ये अचानक कैसे इतने बड़े हो गए? 
ऐसा कैसे हो सकता है की दो देशो के बिच के एक बड़े हिस्से को ये गिरोह कंट्रोल कर रहा है और दुनिया तमाशा देख रही है? 


सारी दुनिया से हजारो नौजवान क्यों इस ग्रुप से जुड़ रहे है? 
इस्लाम का नाम ले कर ये गिरोह शैतान वाले काम क्यों कर रहा है? 
और बहोत से सवालात सभी के ज़हनो में उठना लाज़मी है
दुनिया में हो रही हलचल ने पूरी इंसानियत को झंजोड़ के रख दिया है और इससे मुस्लमान भी अछूते नहीं है. हिस्ट्री की किताब पढ़े तो पता चलता है के दुनियापरस्त मगरीबी ममालिक ने सिर्फ अपने मुल्को को ही नहीं बल्कि सारी दुनिया को अपनी हवस का शिकार बनाया है; जिसके नतीजे में दुनिया को दो बड़ी जंगो (वर्ल्ड वार) का सामना करना पड़ा जिससे करोडो लोगो की जाने गई और बेतहाशा तबाही हुई.
दुसरे वर्ल्ड वार के बाद जब हालात रास्ते पर वापस आ रहे थे, उसी वक़्त मिडिल ईस्ट में ब्रिटिश हुकूमत ने “इजराइल” नाम के लाइलाज कैंसर को मुसलमानों के बिच छोड़ दिया, जिसके बाद से आज तक मिडिल ईस्ट के बाशिंदे चैन की नींद नहीं सो पाए है.


इजराइल ने ना सिर्फ फिलिस्तीनियों पर ज़ुल्म किया, बल्की पुरे इलाके में रहने वाली अवाम पर अपना नेगेटिव असर डाला. साथ ही, निकम्मे अरब हुक्मरानों की हरकतों ने अवाम को और ज्यादा ना-उम्मीद कर दिया. अवाम की हालात ऐसी थी के जहाँ कही उम्मीद की हलकी सी किरन दिखती, उस तरफ दौड़ लगा देती. लेकिन अफ़सोस के कही लीडरशिप बिकी हुई होती, तो कही अवाम को बद्ज़न कर दिया जाता.
इजराइल की मजबूती और इस्तेक़ामत, हर आज़ाद दिल इंसान के सीने में खंजर जैसे चुभी हुई थी, जिसे बाहर निकालने का कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था.
इसी बिच, 1979 में मुल्के ईरान में एक मर्दे मुजाहिद उठता है जिसको दुनिया “इमाम खुमैनी” के नाम से जानती है और अमेरिका के बिठाए हुए “रज़ा शाह पहलवी” को ईरान से बाहर कर, एक इस्लामी हुकूमत की तशकील देता है. अपने पहले ही बयान में इमाम खुमैनी दुनिया के तमाम मज्लुमिन की हिमायत और ज़ालेमिन की मुखालिफत का एलान करते है; और खास तौर पर इजराइल फिलिस्तीन के मसले पर रौशनी डालते हुए मजलूम फिलिस्तीनियों के हक के लिए हर मुमकिन कोशिश करने के अपने पुख्ता इरादे के बारे में दुनिया को बताते है.
प्यासी उम्मत को एक सबील दिखाई देती है जिसके पीछे इजराइल के खिलाफ मुत्तहिद हो कर जमा हुआ जा सकता है. कुछ ही दिनों में सारी दुनिया में इस्लामी इन्केलाब की वाह वाही होने लगती है और खास तौर पर इस्लामी अवाम इमाम खोमीनी की कयादत को बगैर किसी मस्लाको मज़हब की क़ैद के कबुल करने के लिए आमादा नज़र आते है.


दुश्मन अमेरिका इस आमादगी को अच्छी तरह से भांप लेता है और उस वक़्त के इराकी सदर, सद्दाम हुसैन, को झूटे बहाने बना कर ईरान पर हमला करने पर राज़ी कर लेता है. 1980 में जब इराकी फौजे ईरान की सरहदों में दाखिल हो जाती है और ईरान की तरफ से दिफाई एक्दामात होते है; उस वक़्त यही दुश्मन अमेरिका अपने मीडिया के ज़रिये इस जंग को “ईरानी शियों की इराक़ी सुन्नियो के साथ जंग” से ताबीर करने में अपनी पूरी ताक़त झोक देता है.
आलमी सतह पर मीडिया प्रोपगंडे का असर दिखाई देने लगता है और उम्मत निजात की सबील, “इस्लामी इन्केलाब” से दूर होने लगती है. फिरकावारियत की ये चिंगारी धीरे धीरे पुरे इलाके को अपनी चपेट में ले लेती है और उसी के फ़ौरन बाद दुनिया में बहोत सी असीसी चीज़े सामने आती है जो की इससे पहले किसी इंसान ने नहीं सुनी. (फरहीन नफीस की फेसबुक वाल से साभार)
To be continue....... 
फरहीन नफीस

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad

Hollywood Movies