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अल्लाह खुद क्यों नहीं आता मजलूमों को बचाने ? बेतुके बातो पर रौशनी

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जिनको अल्लाह क्या है नहीं मालुम, अल्लाह किसको कहते है नहीं मालुम वह लोग भी मुह उठाकर बेतुकी बाते करने लगते है. और खुदको बहुत बड़ा बुद्धिजीवी समझते है. और आलोचना करने लग जाते है......

एक अल्लाह पर ईमान रखने का हुक्म देने वाले को इस्लाम कहते है. और इस्लाम को फॉलो करें वाले को मुसलमान कहते है. लेकिन कुछ लोग अल्लाह का मतलब कुछ और ही समझते है. अल्लाह को अपने बाप का नौकर ही समझने लगते है. औ मुह उठाकर कहते है की, सीरिया में, म्यांमार में, भारत में मुसलमानों को बचाने के लिए अल्लाह क्यों नहीं आता. यह कहने वालो से जब एक छोटा सा सवाल पूछा जाता है तो बहस का विषयांतर करके भाग जाते है. उनसे जब कोई कहता है की देश के हर नागरिक की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री की होती है तो मुंबई में किसीका क़त्ल होता है तो प्रधानमन्त्री क्यों नहीं आता ? अगर पूना में कोई एक लाख रुपये की चोरी करता है तो भारत का गृहमंत्री चोर को पकड़ने क्यों नहीं आता ? इन सवालों पर उनको सांप सूंघ जाता है. और तीसरा कोई कहता है इसके लिए सिस्टम बनाया हुआ है. अरे भाई अगर इंसान कोई सिस्टिम बनाता है तो कायनात बनाने वाले भी कोई सिस्टिम बनाया होगा ना ? हर आदमी के लिए अल्लाह ही  आये क्या वह तुम्हारे बाप का नौकर है ? बेतुको और बेवकुफो अल्लाह क्या बॉडीगार्ड है ? पुलिसवाला है ? जो तुम्हारी सेवा करेगा ? अल्लाह ने इंसानों को जीने का रास्ता दिखा दिया, सही और गलत में फर्क करने के लिए अक्ल दी, और इंसानों को अपनी मर्जी से जीने के लिए छोड़ दिया. सांस लेने के लिए ऑक्सिजन दिया, खाने-पिने का इन्तेजाम किया, रौशनी के लिए सूरज दिया, आराम करने के लिए रात दी हर एक चीज दी, और खुद की हिफाजत का जरिया भी दिया.


क्या है अल्लाह और क्या है सिस्टिम 
अल्लाह के अस्तित्व के लिए पहले तो एक उदाहरण देना चाहूँगा उन लोगो को जो कहते है हमने अल्लाह को देखा नहीं तो कैसे यकीं करे ? उदाहरण के तौर पर मान लो दुनिया में कोई भी इंसान ऐसा नहीं है जो अपने पाप को बाप होने का फर्ज निभाते हुए देखा. एक माँ के कहने पर यकींन करना होता है. और उसीको बाप कहना होता है माँ ने जिसकी बाप के नाम से पहचान करवाई हो. मैंने भी माँ पर यकीन किया. और कोई भी यह नहीं कहता के मैंने बाप को बाप का फर्ज निभाते नहीं देखा. मैंने भी नहीं कहा.. तो फिर दुनिया के 90 प्रतिशत लोग अल्लाह के अस्तित्व की गवाही देते है तब बोला जाता है की, हमने देखा नहीं. हम मानते है की अल्लाह ने ही चाँद सूरज सितारे अदि कायनात बनाई और किसी इंसान के बस में नहीं की, सूरज को कुछ मिनिट देख सके फिर सूरज को बनाने वाले को कौन देख सकता है ? 


विज्ञान में अल्लाह का अस्तित्व
हाल ही में एक जो विकलांग वैज्ञानिक है उसने कहा की अल्लाह/ गॉड नहीं है यह साबित कर सकते है. मेरा उस विकलांग वैज्ञानिक से सवाल है की, अगर अल्लाह/ गॉड का अस्तित्व नहीं है तो हम उनकी बात पर तब यकीन करेंगे जब वह हमारे एक सवाल का जवाबे देंगे. 

वैज्ञानिक जी हमारा मानना है आपको विकलांग अल्लाह ने बनाया, अगर अल्लाह का अस्तित्व नहीं है तो आप इतने बड़े वैज्ञानिक हो खुदको सीधा कर लो फिर हम भी अल्लाह के अस्तित्व का इनकार करेंगे.
अलाह के अस्तित्व पर सवाल उठाने वालो से जब पूछा जाता है की 14-15 सौ साल पहले कोई सूक्ष्मदर्शी थी क्या ? कोई कंप्यूटर था ? भी चीज का आविष्कार हुआ था क्या तो वह कहते है की वैज्ञानिक खोज तीन सौ साल के पहले नहीं थी. जो भी खोज की गयी है वह तीन सौ साल के अन्दर ही की गयी. बिग बैंग थ्योरी की खोज आजसे सौ साल पहले की गयी. फिंगर प्रिंट की खोज पचास साल पहले, माँ के पेट में भ्रूण की खोज हाल ही में की गयी, इसका मतलब तीन सौ साल पहले इन बातो को वाही जानता होगा जिसने इन चीजो का निर्माण किया. तो कुरआन उठाकर देखलो जिसमे बिग बैंग थ्योरी के बारे में 1441 साल पहले ही बताया गया. और कई वज्ञानिक सबूत है जो कुरआन को अल्लाह की किताब और अल्लाह के अस्तित्व की गवाह है. (कुरआन किसीका मोहताज नहीं के अल्लाह की किताब होने का सबूत दिया जाए. पृथ्वी पर कुरआन ही अपने आप में एक सबसे बड़ा सबूत है) कुरआन 100 प्रतिशत विज्ञान है लेकिन इंसान अबतक सिर्फ 15 प्रतिशत खोज लगा पाया. 


धार्मिक अस्तित्व
अल्लाह के अस्तित्व को नहीं मानने वाले अगर खुदपर गौर करे तो वह एक अंधविश्वास को मानने वाले लोग साबित होंगे. क्यूंकि दुनिया में हर इंसान किसी ना किसी को अपना आका मानता है. कोई मूर्तियों को, कोई निसर्ग को, तो कोई महापुरुषों को. जो लोग अल्लाह के अस्तित्व को नही मानते वाही लोग यह भी मानते है की कोई भी निर्जीव इंसान का ना भला कर सकती है और ना बुरा. यह जानते हुए भी वह निर्जीव वस्तुओ से की अपेक्षा किये हुए नजर आयेंगे. दुनिया में ऐसा कोई धर्म नहीं जिस धर्म का धर्मघर (मंदिर, देवुल, चर्च, विहार) नहीं है. इस्लाम में मस्जिद है लेकिन उसमे कोई भी वास्तु नहीं होती जिसकी इबादत की जाती हो. और मस्जिद में ही नमाज पढ़ना अनिवार्य भी नहीं. मुसलमान कहीं भी, किसी भी जगह नमाज अदा कर सकता है.
क्यों नहीं आता अल्लाह मजलूमों को बचाने?

अल्लाह ने कायनात बनाए और कायनात में सिर्फ इंसान को अपने मर्जी से जीने का अधिकार दिया और जीने के तरीके एक बार बता दिए. मान लो कोई एक्सिडेंट में मारा जाता है तो कार बनाने वाले वैज्ञानिक को दोषी नहीं माना जाता. बल्कि कार चलाने वाले को दोषी माना जाता है. कायनात में सब कुछ अल्लाह के मर्जी के मुताबिक़ चलता है लेकिन अल्लाह ने इंसानों की सारी जरूरतों को पहले ही पूरा कर दिया. जैसे के, रहने के लिए पृथी जैसे (कई) गृह, खाने के लिए अनाज, सोने के लिए रात दी, कमाने के लिए दीन दिया, सूरज दिया, चाँद दिया, एक परिवार दिया. और सबको अल्लाह ही चलाता है. अगर कोई कहदे की अल्लाह नहीं चलाता तो बकने से पहले वह सूरज को पश्चिम से उगाकर दिखाए या पृथ्वी भ्रमण को रोक कर दिखाए, या आसमान पर चढ़ कर दिखा दे. और अल्लाह ने कुरआन में साफ़ साफ़ कह दिया की चाँद, सितारे, सूरज, पेड़, पौधे, जानवर, दिन, रात सब कुछ इंसान के लिए बनाई हुई चीजे है यह पूजनीय नहीं है. लेकिन इंसान को सबसे ज्यादा दिमाग इसलिए दिया की वह खुद इन चीजो का इस्तेमाल दिमाग से करे. अगर कोई बेगुनाह का क़त्ल करता है तो इसमें अल्लाह का कोई दोष नहीं, और कोई एक बेगुनाह की जान बचाता है तो अल्लाह पर अहसान नहीं. लेकिन इन चीजो का बदला आखिरत में जरुर मिलेगा.


आखिरत क्या है ?
आखिरत क्या है यह ज्यादा डीप ने ना जाते हुई अनाडी को भी समझे ऐसे एक ही उदाहरण से समझाउंगा. दुनिया का कोई भी ऐसा कानून नहीं है जो इंसान के अच्छे कामो के लिए उसके काम के मुताबिक़ बदला दे सके, और दुनिया में कोई भी कानून नहीं जो इंसान के जुर्म की सजा जुर्म के मुताबिक़ दे सके. कानून छोड़िये इंसान की औकात ही नहीं इंसान को उसके अच्छे और बुरे कामो का मुआवजा दे सके. यह सब अल्लाह ही देने वाला है और वह भी आखिरत में. वो कैसे ?
मान लो किसी एक इंसान ने एक इंसान का क़त्ल किया उसको फांसी होती है, किसी इंसान ने 100 इंसानों का क़त्ल किया तब भी उसे मौत की सजा सुनाई जाती है, अगर किसीने एक लाख लेगो का क़त्ल किया तो उसे भी मौत की सजा सुनाई जाती है. एक इंसान के क़त्ल की सजा अगर मौत है तो फिर एक लाख इंसानों के क़त्ल की सजा एक लाख मौत के बराबर होनी चाहिए लेकिन यह इंसान के बस की बात नहीं. एक लाख इंसानों के क़त्ल में मौत की सजा सुनाई गयी हो तो वह 99हजार 9 सौ 99 लोगो के साथ अन्याय होगा. 
लेकिन अल्लाह इंसान को उसके किये की सजा बराबर देगा. एक लाख लेगो के क़त्ल की सजा एक लाख बार मौत होगी. 
" जिन लोगों ने हमारी आयातों को मानने से इनकार कर दिया, उन्हें बिलाशुबाह(नि:संदेह) हम उन्हें आग में झोकेंगे और उनके शारीर की खाल(त्वचा) जितनी बार गल जायेगी/नष्ट होजायेगी तो उसकी जगाह दूसरी खाल पैदा कर देंगे ता की वो खूब अझाब/तकलीफ का मजा चखे. अल्लाह बड़ी कुदरत रखता है, और अपने फैसलों को व्यवहार में लानेका बहोत ही अच्छी तरहा जानता है "".........(कुरआन:- 4 आयात-56)

उपरोक्त कुरआन की आयात वैज्ञानिक लेवल से बिलकुल सही है इसलिए थायलैंड के "चियांग-माई यूनिवर्सिटी के DEPARTMENT OF ANATOMY के संचालक प्रोफ़ेसर "तिगातात तेजासन" ने इस्लाम कुबूल किया.
कुरआन की कुछ वैज्ञानिक आयते पेश है जो सिर्फ बुद्धिजीवी दिमाग से काम लेने वाले लोगो को समझने और उसपर गौर करने तथा अभ्यास करने के लिए दी जा रही है.


कुरआन में विरोधाभास नहीं है.
‘अगर यह कुरआन अल्लाह के बजाये किसी और की ओर से होता तो वे उसके भीतर बडा विरोधाभास पाते।‘ (-सूरःनिसा कुरआन 4:82 ) 

कुरआन अल्लाह की चुनौती
‘‘और अगर तुम्हें इस मामले में संदेह हो कि यह किताब जो हम ने अपने बंदों पर उतारी है, यह हमारी है या नहीं तो इसकी तरह एक ही सूरत (क़ुरआनी आयत) बना लाओ, अपने सारे साथियों को बुला लो एक अल्लाह को छोड़ कर शेष जिस – जिस की चाहो सहायता ले लो, अगर तुम सच्चे हो तो यह काम कर दिखाओ, लेकिन अगर तुमने ऐसा नहीं किया और यकी़नन कभी नहीं कर सकते, तो डरो उस आग से जिसका ईधन बनेंगे इंसान और पत्थर। जो तैयार की गई है मुनकरीन हक़ (सत्य को नकारने वालों)के लिये ( अल – क़ुरआन: सूर 2, आयत 23 से 24 )

इंसान की बनावट
1:" फिर ज़रा इंसान यही देख ले की वह किस चीज से पैदा किया गया ! एक उछलने वाले पानी से पैदा किया गया जो पीठ और सिने की हड्डियों के बिच से निकलता है" (कुरान 86,आयात 5-6)
2:"हमने इंसान को इब्तेदा(Starting)मिटटी के रस से बनाया फिर उसे एक सुरक्शि जगह पर टपकी एक बूँद में परिवर्तित किया,फिर उस बूँद को लोथड़े की शक्ल दिया, फिर लोथड़े को बोती बनाया,फिर बोती की हड्डियां बनायी फिर हड्डियों पर गोश चढाया,फिर उसे एक रचना बनाकर खडा किया ! बस बड़ा ही बरकत वाला है अल्लाह, सब कारीगरों से बेहतर कारीगर (कुरान 39 आयात 6)
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3:क्या वह एक गंदा पानी (विर्य० ना था जो (गर्भाशय)में टपकाया जाता है ? फिर वह एक थक्का बना फिर अल्लाह ने उसका शारीर बनाया और उसके अंग ठीक किये फिर उस से पुरुष और स्त्री दो किस्में बनायी (कुरान 75 आयात 37-38-39)

बिग बैंग थ्योरी
'''क्या वो लोग जिन्होंने (मुहम्मद स.) का इनकार किया, गौर नहीं करते? की यह सब आकाश, धरती एक-दूसरे से मिले हुवे थे, फिर हमने (अल्लाह)ने उन्हें अलग-अलग कर दिया (अल-कुरआन:21 आयात 30)

""और ना ये सूरज के बस में है के वो चाँद को जा पकडे (टकराए) और ना रात दिन पर वर्चस्व ले जा सकती है, ये सब एक आकाश में तैर रहे है (अल-कुरआन:36 आयात:40)
-अहेमद कुरेशी-

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