भारत में कई किस्म के गिरोह पाए जाते है जो व्यवस्था परिवर्तन की बात करते है. और ऊपर से कहते है की "फलांमय" राष्ट्र बनाना है. तब इस बात पर सवाल यह उठता है की भारत "इंसानमय" ही रहा तो क्या बुरा है ? तुर्की में व्यवस्था परिवर्तन हुआ "मुस्लिममय" नहीं, लीबिया में व्यवस्था परिवर्तन हुआ "यहूदीमय" नहीं. दुनिया में जहां जहां भी व्यवस्था परिवर्तन हुआ वहां कोई भी "धर्ममय" राष्ट्र का निर्माण नहीं हुआ बल्कि व्यवस्था परिवर्तन इसलिए हुआ की, वहां से इंसानियत ख़त्म हो चुकी थी. समता ख़त्म हो चुकी थी, लेकिन भारत के लोग हमेशा से एक अजीब तरह के लोग माने जाते है. कुछ लोग भारत को बुद्धामय बनाने में लगे है, कुछ लोग भारत को हिन्दुमय बनाने के लिए कड़ी महेनत कर रहे है, तो कुछ लोग भारत को ब्राम्हणमय बनाने की कोप्शिसो में जुटे है. इस "मय" के चक्कर में हर कोई मुसलमानों का ही इस्तेमाल करता हुआ दिखाई दे रहा है. फर्क सिर्फ इतना ही की, कोई गिरोह मुसलमानों को साथ लेकर अपना "मय" चला रहा है तो कोई मुसलमानों के खिलाफ वातावरण बनाकर अपना "मय" वाला कार्यक्रम चला रहा है. इससे यह बात तो पक्की है की, बिना मुसलमानों के आप कोई भी "मय का निर्माण नहीं कर सकते.
सबसे ज्यादा गहराई से सोचने वाली बात है की, भारत मुसलमानों ने कभी भारत को "मुस्लिममय" बनाने के बारे में सोचा भी नहीं. फिरभी सबकी नजर में मुसलमान ही बुरा है. चाहे वह उपरोक्त गिरोह में किसीको समर्थन करे या विरोध. मुसलमानों को भारतीय संविधान पर गर्व है. और भारतीय संविधान के मुताबिक़ हमारा देश भारत ही हो वह भारत जहां संत तुकाराम महाराज, छत्रपति शिवाजी महाराज, राष्ट्रपिता जोतीराव फुले, डा. बाबासाहब आंबेडकर इन महापुरुषों ने समता का भारत बनाने के लिए अपनी जिंदगियां कुर्बान की. और वही भारत राष्ट्र रहे यह मुसलमानों की सोच से साबित होता है.
कुछ लोग मुसलमानों का मजाक उड़ाते है की, भारत को हिन्दुस्तान कहकर मुसलमान आरएसएस को सपोर्ट करते है. लेकिन उन्ही लोगो से किसी मुस्लिम ने सवाल किया "की क्या आप एससी को दलित कहकर वर्णव्यवस्था को सपोर्ट नहीं कर रहे?" तब इनकी जुबानो पर इलेक्ट्रोनिक लॉक लग जाते है. (चाबी वाला ताला पुराना हो गया) गौरतलब है की मुसलमान अकेली ही कौम नहीं जो भारत को हिन्दुस्तान कहती हो. भारत को हिन्दुस्तान कहने वालो में बहुत सारे ऐसे भी गैरमुस्लिम लोग है जो आरएसएस की विचारधारा के विरोधी है. जैसे जैसे लोग दलितों को एससी या अनु. जाती कहने लगे वैसे ही मुसलमान भी भारत कहने लगे है. अगर कोई शब्द मात्र कहने से सपोर्ट होता है तो, भारत के 85% लोग अगर व्यवस्था परिवर्तन इस शब्द का उछार करने लेगे तो व्यवस्था परिवर्तन हो जाता. संघर्ष करने की जरुरत नहीं पड़ती.
मुसलमानों को किसी एक ही दिशा में बहने वाले बहाव में नहीं बहना है इसीलिए मुसलमान हमेशा से सभी मजलूमों को साथ निस्वार्थ रूप से खडा होता आया है, कभी भी किसीसे कोई उम्मीद नहीं रखता. मुसलमानों की समस्याओं को कह्तं करने की कैपेसिटी किसीमे भी नहीं यह मुसलमान बखूबी जानता है. लेकिन औरो की समस्याओं को ख़त्म करने का जिगर मुसलमान अपने सिने में रखे हुए है. जय भारत
-अहेमद कुरेशी
(उपरोक्त लेख किसीपर टिका टिपण्णी करने के उद्देश्य से नहीं लिखा गया, अगर इस लेख किसीके विचारों से मेल खाता हो तो उसे जिम्मेदार हम नहीं)