आवेश तिवारी वाराणसी -
कौशाम्बी में अपने मवेशियों को नहर का पानी पिलाने गई सुनीता देवी और उसके बच्चों को केवल इसलिए पीट दिया जाता है क्यूंकि गाँव के दबंग कहते हैं कि सरकारी नहर उनकी अपनी संपत्ति है । इलाहाबाद में महज 4 रूपए के लिए दो दलितों की ह्त्या हो जाती है तो सोनभद्र में अगड़ी जाति के लोग दलित महिलाओं को डायन करार देती है। उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार भले ही कानून व्यवस्था और दलितों आदिवासियों से जुड़े मुद्दों को लेकर कितने भी दावे कर ले ,मगर जमीनी हकीकत यह है कि दलित उत्पीडन के सर्वाधिक मामले उत्तर प्रदेश में हो रहे हैं ।राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य में प्रतिदिन दलित उत्पीडन के औसतन 20 मामले दर्ज किये जा रहे हैं ,दलितों के खिलाफ होने वाले उत्पीडन के मामलों में अकेले यूपी की हिस्सेदारी 17 फीसदी से भी ज्यादा है जो कि देश में सर्वाधिक है। सिर्फ इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश में दलितों की हत्या की दर देश में दलितों की ह्त्या की दर से दोगुनी है। यह स्थिति तब है जबकि मायावती के सत्ता से बाहर जाने के बाद राज्य में अनुसूचित जाति -जनजाति एक्ट में दर्ज किये जाने वाले मामलों में कमी आई है । गौरतलब है कि बसपा सुप्रीमो मायावती बार बार अलग अलग मंचों से राज्य में दलितों के खिलाफ होने वाले अत्याचार को मुद्दा बनाती रही है ,यह भी लगभग तय है कि मायावती इसे चुनावी मुद्दा बनायेंगी। आंकड़ों मे यूपी में दलित उत्पीडन 1-वर्ष 2014 में उत्तर प्रदेश में दलितों की 245 हत्याएं हुयी थीं जबकि पूरे देश में ऐसे कुल 744 अपराध हुए थे उत्तर प्रदेश में दलितों की हत्यायों की दर राष्ट्रीयदर से दुगनी थी।2-उत्तर प्रदेश में दलितों के विरुद्ध बलवे के 342 मामले हुए जब कि राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे अपराधों की संख्या 1147 थी जो कि 0.4 प्रति लाख थी।
उत्तर प्रदेश में दलितों के विरुद्ध बलवे के अपराधों की दर राष्ट्रीय स्तर से लगभग डेढ़ गुना थी।3-उत्तर प्रदेश में दलित महिलाओं को विवाह के लिए विवश करने के इरादे से 270 अपहरण हुए थे जब कि राष्ट्रीय स्तर पर इन मामलों की संख्या 427 थी उत्तर प्रदेश में महिलयों पर ऐसे अपराध की दर राष्ट्रीय स्तर से तीन गुना से भी अधिक थी।4-उत्तर प्रदेश में उक्त अवधि में अपहरण के 383 मामले हुए जब कि इसी अवधि में पूरे देश में ऐसे 758 मामले हुए । इस प्रकार उत्तर प्रदेश में दलितों के अपहरण की दर राष्ट्रीय स्तर से दुगनी थी।5- वर्ष 2014 में उत्तर प्रदेश में दलितों के विरुद्ध 8075 अपराध हुए थे ,इसी अवधि में पूरे देश में दलितों के विरुद्ध 47064 अपराध घटित हुए थे वर्दी पर भारी बिरादरी की सियासत उत्तर प्रदेश में दलित उत्पीडन के मामलों में बेतहाशा वृद्धि की एक बड़ी वजह यह है कि थानों पर थानाध्यक्षों की नियुक्ति में 21 फीसदी का आरक्षण होने के बावजूद भी थानों पर उनकी बहुत कम नियुक्ति की गयी है जिस का सीधा प्रभाव दलित उत्पीडन से सम्बंधित मामलों के एफआईआर पर पड़ता है।इसके अलावा प्रदेश में दलित उत्पीड़न को लेकर मुख्यमंत्री तथा जिला स्तर पर निर्धारित अवधि में की जाने वाली समीक्षा बैठक बिलकुल नहीं की जा रही है।
थानों में दलितों के खिलाफ होने वाले मामलों में पुलिस प्रशासन किस किस्म की लापरवाही करता है उसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2014 में उत्तर प्रदेश में दलितों के दर्ज किये गए उन में 1500 मामले धारा 156(3) अदालती आदेश से दर्ज किये गए थे। क्या कर रही है सरकार प्रदेश में दलित उत्पीड़न के कारणों के विश्लेषण व उन पर प्रभावी नियंत्रण के लिए वर्ष 1993 में विशेष जांच शाखा का गठन कर 20 जिलों में इसकी उपशाखाये भी स्थापित की गई थी । लेकिन वहां केवल सजा के तौर पर नियुक्तियां दी जाती रही। वर्ष 2015 में केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम में संशोधन कर उसे प्रभावी बनाया, तो जनवरी 2016 में प्रदेश सरकार ने राज्य में संशोधित कानून लागू कर दिया। अब सरकार का कहना है कि सभी 75 जिलों में विशेष जांच शाखा स्थापित की जाएगी।हांलाकि अब तक इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सकता है ।