मरी गयो को लेकर गुजरात के उना में दलितों (अनु जातियों) पर हुए अत्याचार के विरोध ने हिंसक मोड़ धारण कर लिया है. गुजरात के साथ साथ कई राज्यों में आन्दोलन करने की चेतावनी दी जा रही है. गौरतलब है की निर्दोष जाकिर नाईक को दोषी टहराने के लिए जिस मीडिया ने रात दिन एक कर दिया था वह मीडिया दलितों (अनु जातियों) पर हुए अत्याचार के मामले में खामोश है. अत्याचारियों के साथ-साथ सोशल मीडिया पर भारतीय मीडिया पर भी लोगो का तीखा विरोध दिखाई दे रहा है. अलग अलग विचारवंत अलग अलग प्रतिक्रियाये दे रहे है लेकिन इन सब में एक बात की समानता पाई जा रही है की, दोषियों पर कड़ी कारवाई की मांग और गो-माताओं को खुद संभालो. हम आपको कुछ विचारवंत के विचार जैसे के तैसे निचे दे रहे है
जानेमाने वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल अपनी फेसबुक वाल पर लिखते है की,
Dilip C Mandal
आंबेडकरवादियों से शांति की अपील मत कीजिए सरकार. संविधान और कानून की इज्जत वह आपसे ज्यादा करता है. जो शांतिपूर्ण नहीं है, वह कुछ भी हो सकता है लेकिन आंबेडकरवादी नहीं. जब वह सबसे अधिक गुस्से में होगा, तो आपके खिलाफ वोट डाल देगा... बस इतने से ही उसका काम बन जाता है. यही बाबा साहेब का रास्ता है.
गुजरात में लोगों ने यही तो कहा है कि तुम्हारी माँ है, अंतिम संस्कार तुम करो. इससे बढ़कर अहिंसक आंदोलन और क्या हो सकता है?
Dilip C Mandal
और अब राजकोट हाईवे पर गोमाताओं की लाश रखकर ट्रैफिक जाम और प्रदर्शन...पूरा गुजरात उबल रहा है. मुख्यमंत्री को तत्काल इस्तीफा देना चाहिए. पीड़ित दलितों को 50 लाख करके मुआवजा, सरकारी नौकरी. गौ-आतंकवादियों पर धारा 307 और दलित उत्पीड़न निवारण एक्ट के तहत मुकदमा. फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई.
Dilip C Mandal
अभी-अभी
विश्व हिंदू परिषद, गुजरात प्रदेश ने गाय की खाल उतार रहे दलितों पर अत्याचार की निंदा की है.... कड़े शब्दों में. :)
मोहन भागवत अपनी मां का अंतिम संस्कार कर लें, फिर इस पर विचार किया जा सकता है.
विश्व हिंदू परिषद को मालूम है कि जिस दिन दलितों और पिछड़ों ने गुलामी छोड़ दी उस दिन सवर्ण हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएंगे. मुसलमानों से तीन प्रतिशत कम.
Asif Burney
एक माँ जो नंगी पुंगी सड़को पर घूमती है, माँ जो कचरा खाती है, माँ जिसकी हड्डियां चमड़ी में से बाहर झांकती है, माँ जिसके पुत्र उसको घर में नही रखते, माँ जो किसी खेत में घुस जाए तो डंडो लाठियो की बरसात झेले, माँ जिसे मरने के बाद उसके कुपुत्र उसे गिद्ध कुत्तो द्वारा नोंचने के लिए फेंक देते हैं।
ऐसी भी माँ और ऐसे भी पुत्र होते है इस देश में माँ और पुत्र के ऐसे ही स्नेहभरे सम्बन्धो के कारण भारत विश्वगुरु बना था और गुजरात की घटना के बाद एक बार फिर बनेगा।
Sujeet Kataria
गुजराती दलितों ने गाय के शव को उठाने से इंकार कर दिया है, लगता है अब गैरदलित इस चुनौती को स्वीकार कर लेंगे. बात आखिर गौमाता का जो है. ....
Kuldeep Wasnik
गुजरात में तो आग लगा दी हैं हमारे लोगो ने । किन्तु मरी हुई गाय की लाशें कलेक्टर ऑफिस के सामने नही आरएसएस के ऑफिस सामने रखो। नागपुर के लोगो के पास अच्छा मौका है अपने गुजरात के भाइयों को मद्त करने का ।
सम्राट रख
सासक जाती के द्वारा ही हिंसक आंदोलन निर्माण किया गया है
गुजरात के आंदोलन को खतम करने का प्लान बनाया है ,
मैं दावे के साथ कहता हूं ,
इसमें सासक जाती जो गुजरात में फस गई थी उसको बचाने के लिए हमारे ही लोगो का इस्तेमाल कर तोफोड अर्थात हिंसक आंदोलन में रुपांतरण कर आंदोलन को खतम करना ओर सासक जाती मुनवादी लोगो बचाना है। रोहित वेमुला के मुद्दे को दबाने के लिए ऐक कनैया कुमार नामके बिहार के ब्राह्मण को हमारे सामने प्रोजेक्ट किया । उसी तरह । हो रहा है सावधान ⚠ हिंसक आंदोलन से बचे ।
जय भीम
बीबीसी में छपी खबर के अनुसार गुजरात में कथित गौरक्षकों के हाथों दलित युवकों की पिटाई का मुद्दा सोशल मीडिया पर ज़ोरशोर से उठाया जा रहा है.
स्थानीय पत्रकार प्रशांत दयाल के मुताबिक़ सोमवार को विरोध प्रदर्शन कर रहे दलित गुटों ने गुजरात के सुरेंद्रनगर ज़िला मुख्यालय के सामने मरी हुए गायें फेंक दी थीं.
ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गई हैं.
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत को संबोधित करते हुए फ़ेसबुक पर लिखा, "तीन ट्रक...संघियों आगे बढ़ो...अंतिम संस्कार करो...मोहन भागवत जी को तत्काल गुजरात पहुंचना चाहिए...."
इस मुद्दे पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से फिलहाल कोई टिप्पणी नहीं की गई है.
दलितों ने गुजरात में विरोध प्रदर्शन भी किया है.
एक टिप्पणी में फ़ेसबुक पर लीलाधर मेघवाल ने लिखा, "इससे अच्छा विरोध करने का तरीक़ा हो भी नहीं सकता...क्या बेहतरीन तमाचा जड़ा है."
पटेल स्नेहलभाई ने फ़ेसबुक पर लिखा, "गुजरात की प्रयोगशाला में गुजरात के दलितों ने अदभुत असरदार प्रयोग किया है."
सनी धीमान वाकड़ ने टिप्पणी की- "मुझे याद नहीं है कि इससे पहले कभी ब्राह्मणवाद पर इतना ज़ोरदार वार किया गया है. भारत बदलाव के दौर में है."
दीपिका परमार ने टिप्पणी की, "लोकतंत्र में विरोध का महत्व है और गुजरात के भाइयों ने जो तरीका अपनाया है उसको सलाम."
दलित युवकों को पीटे जाने के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान सात दलित युवकों ने ज़हर भी खा लिया था जिनमें से दो की हालत गंभीर बनी हुई है.
देवनाथ चंद ने लिखा, "इस तरह से ज़हर फैलाना ठीक नहीं हर समस्या का समाधान है आपसी तालमेल से हम अच्छा समाज बना लेगे."
पत्रकार पृथक बटोही ने फ़ेसबुक पर लिखा, "इससे ब्राह्मण समाज का कोई लेना देना नहीं, कुछ नीलक्रांति के बौद्ध चरमपंथी ब्राह्मण समाज को इस कृत्य के लिए ज़िम्मेदा ठहरा रहे हैं."
कुछ लोगों ने अपनी टिप्पणी में कथित गौरक्षा दलों पर प्रतिबंध की मांग भी की है.
अमजद ख़ान अहमद ने पीटे गए दलित युवकों की पोस्ट लगाते हुए लिखा, "हम तो वही काम कर रहे थे जो ब्राह्मणों ने शास्त्रों में दलितों के लिए लिखा है, फिर ये लोग हमें पीट क्यों रहे हैं."